GEETA PART SIX
"GEETA PART SIX" इस आर्टिकल में हम गीता के 6 अध्याय का अध्ययन करेंगे जिसमें श्री भगवान, अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि:- श्री भगवान कृष्ण बोले :- जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला सन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योग्य नहीं है हे अर्जुन! जिसको संन्यास ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग जान, क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता। योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष के लिए योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही हेतु कहा जाता है। और योगारूढ़ को जाने पर उस योगारूढ़ पुरुष का जो सर्वसंकल्पों का अभाव है, वहीं कल्याण में हेतु कहा जाता है। जिस काल में न तो इंद्रियों के भागों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है, उस काल में सर्वसंकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है। अपने द्वारा, अपना संसार खुद ही उद्धार करे और अपने को अधोगति में ना डाले; क्योंकि मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना ...