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Showing posts from May, 2019

Aagyaa chakra

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"Aagyaa chakra" असीम शक्तियों का भंडार है आपका आज्ञा चक्र हाँ दोस्तों ये सच बात है मनुष्य का शरीर असीम शक्तियों का भंडार है। अनगिनत पावर  प्लांट है इसमें। इस पावर प्लांट या पावर हॉउस को समझना बहुत जरुरी है ताकि हम इसका भरपूर लाभ सके। यूँ तो पूरे शरीर में जितनी कुंडलिनी चक्र है उनमें आज्ञा चक्र का विशेष नाम आता है। यह चक्र मस्तक के बीच दोनों भौहों के मध्य में विराजमान है, जहाँ पर सब लोग बिंदी या तिलक लगाया करते हैं। आज्ञा चक्र के साधक सदा निरोग, सम्मोहक और त्रिकालदर्शी माने जाते हैं। कुंडलिनी के इसी आज्ञा चक्र को योग साधनाओं दवारा जागृत करके किसी भी स्त्री /पुरुष का भुत भविष्य देखा जा सकता है। वर्तमान/तत्काल वह क्या सोंच रहा है यह आसानी से पता लगाया जा सकता है। चुकि पुरे शरीर में स्थित, लौह तत्व की अधिकांश मात्र आज्ञा चक्र पर ही स्थित होता है इस कारण चुम्बकीय प्रभाव भी यही पर होता है। अतः जब इस चक्र का जब हम ध्यान करते हैं तो हमारे शरीर में एक विशेष चुम्बकीय उर्जा का निर्माण होने लगता है उस उर्जा से हमारे अन्दर के दुर्गुण ख़त्म

Energy

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"Energy" कहते हैं कि सूरज भी, जो कि महान ऊर्जा का भंडार है और जो करोड़ों वर्ष का है, निरंतर रिक्त हो रहा है, और चार हजार वर्षों के भीतर वह समाप्त होने वाला है। सूर्य समाप्त होगा, क्योंकि उसके पास फिर विकीरित करने को ऊर्जा नहीं बचेगी। सूर्य प्रतिदिन मर रहा है, क्योंकि उसकी किरणें उसकी ऊर्जा को ब्रह्मांड की सरहदों की ओर--अगर उसकी कोई सरहदें हैं--बहा ले जा रही हैं, उसकी ऊर्जा बाहर जा रही है। केवल मनुष्य अपनी ऊर्जा को दिशा देने और रूपांतरित करने की क्षमता रखता है। अन्यथा मृत्यु स्वभाविक घटना है, प्रत्येक चीज मरती है। केवल मनुष्य अमृत को, चिन्मय को जान सकता है। तो तुम इस पूरी चीज को एक नियम में सीमित कर सकते हो। अगर ऊर्जा बाहर जाती है तो मृत्यु उसका परिणाम है, और तब तुम कभी न जानोगे कि जीवन क्या है! तुम धीरे-धीरे मरना भर जानोगे, जीवित होने की प्रगाढ़ता का तुम्हें पता नहीं चलेगा। अगर किसी चीज की भी ऊर्जा बाहर जाती है तो उसकी मृत्यु अपने आप घटित होती है। और अगर तुम ऊर्जा की दिशा बदल देते हो, बाहर बहने की बजाय वह भीतर की ओर बहने लगे तो र

Motivat for children

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'motivat for children' बच्चों को अच्छी आदतें देना अर्थात अच्छे संस्कार देना अर्थात बच्चों को महान बनाने की अध्यात्मिक विधि अर्थात गर्भस्थ शिशु को  दिव्य चेतना देने की अध्यात्मिक विधि प्रियंका जी ने कॉमेंट द्वारा जानना चाहा है कि "क्या गर्भ में पल रहे बच्चे को या दूध पीने वाले बच्चे को भी ज्ञान दिया जा सकता है" प्रियंका जी आपका सवाल बहुत ही अच्छा है बच्चा जितना छोटा होता है उसमें किसी भी माध्यम से विचारों को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है जब बच्चा मां के पेट में होता है तो मां का रोम-रोम उसकी आंख नाक कान होते हैं उसका मस्तिष्क होते हैं उसके देखने सुनने व समझने की शक्ति हजारो लाखो गुना बढ़ जाती है इसलिए बच्चा मां के पेट में कहीं अधिक जल्दी सीख और समझ सकता है जिस कार्य को सीखने के लिए या परफेक्ट होने के लिए सालों या महीने लगते हैं वह कार्य बच्चा गर्भ में घंटों में सीख सकता है यही वह विधि थी जिस का प्रयोगिक रूप भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सिखाया और अर्जुन ने उसका प्रयोग अपनी पत्नी पर किया जब वह गर्भवती थी अभिमन्यु उसके गर्भ में था