Motivat for children
'motivat for children'
बच्चों को अच्छी आदतें देना अर्थात अच्छे संस्कार देना अर्थात बच्चों को महान बनाने की अध्यात्मिक विधि अर्थात
गर्भस्थ शिशु को दिव्य चेतना देने की अध्यात्मिक विधि
प्रियंका जी ने कॉमेंट द्वारा जानना चाहा है कि "क्या गर्भ में पल रहे बच्चे को या दूध पीने वाले बच्चे को भी ज्ञान दिया जा सकता है"
प्रियंका जी आपका सवाल बहुत ही अच्छा है बच्चा जितना छोटा होता है उसमें किसी भी माध्यम से विचारों को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है जब बच्चा मां के पेट में होता है तो मां का रोम-रोम उसकी आंख नाक कान होते हैं उसका मस्तिष्क होते हैं उसके देखने सुनने व समझने की शक्ति हजारो लाखो गुना बढ़ जाती है इसलिए बच्चा मां के पेट में कहीं अधिक जल्दी सीख और समझ सकता है जिस कार्य को सीखने के लिए या परफेक्ट होने के लिए सालों या महीने लगते हैं वह कार्य बच्चा गर्भ में घंटों में सीख सकता है यही वह विधि थी जिस का प्रयोगिक रूप भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सिखाया और अर्जुन ने उसका प्रयोग अपनी पत्नी पर किया जब वह गर्भवती थी अभिमन्यु उसके गर्भ में था अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान गर्भ में ही प्राप्त किया था
यह विधि मुझे गुरु शिष्य परंपरा में अपने गुरु श्री सुरेंद्र गिरी जी से प्राप्त हुई यदि कोई गर्भवती स्त्री चाहती है कि वह किसी विशेष बच्चे को जन्म दे जैसे वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, अभिनेता या ऋषि-मुनि
माना वह एक श्रेष्ठ क्रिकेट खिलाड़ी को जन्म देना चाहती है तो गर्भ के दौरान माता को चाहिए कि उसकी सभी क्रियाएं पढ़ना-लिखना tv देखना सभी क्रिकेट से संबंधित हो, सोचना विचारना बातें करना सब कुछ क्रिकेट खेल की ही हो और यह सब वह पूरी रुचि के साथ करें जैसे एक इंजीनियर परफेक्ट पार्ट बनाने के लिए अपनी संपूर्ण योग्यता का प्रयोग करता है ऐसे ही अपनी इच्छा अनुसार योग्यताओं से परिपूर्ण बच्चा प्राप्त करना भी प्रयोगिक किया है पांचों इंद्रियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर मस्तिष्क में विचार चलते हैं और विचारों के आधार पर मस्तिष्क बायोकेमिकल बनाता है इन बायो केमिकल का रस बच्चे का भोजन होता है और मस्तिष्क में चलने वाले विचार उसका ज्ञान
एक बार एक ऐसे लड़के को मुझे हीलिंग देने बाहर
जाना हुआ जो शारीरिक रूप से विकलांग था उसकी मानसिक समस्या यह थी कि यदि कोई उसके बिस्तर पर आकर बैठ जाए तो वह बहुत अधिक डर और सहम जाता था बे कारण ही अक्सर वह रोने लगता था एक दिन काउंसलिंग के समय मैं उसकी मां को बता रहा था कि यदि गर्भ के समय माता हर समय कुंठित डरी-सहमी या क्रोधित रहती है तो बच्चा भी जन्म के बाद ऐसी भावनाओं से प्रभावित रहेगा मेरी बात जैसे ही पूरी हुई उसकी मां ने बड़ी दुख भरी आवाज में रोते हुए कहा की इसका मतलब मैं ही दोषी हूं अपने बेटे की ऐसी अवस्था के लिए
आप ठीक कहते हैं जब तक यह मेरे पेट में रहा पूरे 9 महीने मेरे डर से भरे व रो रो कर निकले मेरी सास मुझ पर बहुत अत्याचार करती थी मुझे मारती पीटती रहती थी
जैसे भारी डर की अवस्था में कोई कलाकार जब मूर्ति बनाता है तो वह अपनी योग्यता का पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाएगा वैसे ही गर्भ में पल रहे बच्चे का निर्माता अंतर्मन करता है डर की अवस्था में निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न होने से बच्चों में विकृति आ जाती है इसी कारण से डॉक्टर गर्भावस्था में खुश रहने की सलाह देते हैं
नोट:- जब गर्भ में बच्चा 3 महीने का हो जाए तो मां बच्चे को संदेश दे सकती है शांतचित्त से मां 15 से 20 मिनट लेट जाए या सुखासन में बैठ जाएं जब मन के विचार शांत हो जाए तो धीरे-धीरे अपना ध्यान गर्भस्थ शिशु पर ले जाए आंखें बंद कर ले और कल्पना करें कि तुम उसे देख रहे हो और वह भी तुम्हें देख वह सुन रहा है मातृत्व के प्रेम में खो जाए जैसे ही मां इतनी गहरी भावनाओं में खो जाएंगीे उसका लिंक गर्भस्थ शिशु से हो जाएगा अब जो भी निर्देश या संदेश मां उसे देगी वह स्वीकार करेगा मां उसे उच्च कोटि के विचार दें जैसे तुम सभी श्रेष्ठ गुण और योग्यताओं से संपन्न हो अवश्य तुम श्रेष्ठ और महान बनोगे तुम अपने माता पिता और अपने देश का नाम रोशन करोगे आदि उच्च विचार दे
जब मां बच्चे को स्तन से दूध पिलाती है तो स्वयं वह एक ध्यान की अवस्था में चली जाती है उस अवस्था में वह ऐसे ही विचारों को धीरे-धीरे बुदबुदाकर शिशु को निर्देश दे सकती है
साइकोलॉजी के सिद्धांत यूनिवर्सल ट्रुथ है इन सिद्धांतों को अपनाकर इंसान सहजता से इनका लाभ प्राप्त कर सकता है
बच्चों को अच्छी आदतें देना अर्थात अच्छे संस्कार देना अर्थात बच्चों को महान बनाने की अध्यात्मिक विधि अर्थात
गर्भस्थ शिशु को दिव्य चेतना देने की अध्यात्मिक विधि
प्रियंका जी ने कॉमेंट द्वारा जानना चाहा है कि "क्या गर्भ में पल रहे बच्चे को या दूध पीने वाले बच्चे को भी ज्ञान दिया जा सकता है"
प्रियंका जी आपका सवाल बहुत ही अच्छा है बच्चा जितना छोटा होता है उसमें किसी भी माध्यम से विचारों को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है जब बच्चा मां के पेट में होता है तो मां का रोम-रोम उसकी आंख नाक कान होते हैं उसका मस्तिष्क होते हैं उसके देखने सुनने व समझने की शक्ति हजारो लाखो गुना बढ़ जाती है इसलिए बच्चा मां के पेट में कहीं अधिक जल्दी सीख और समझ सकता है जिस कार्य को सीखने के लिए या परफेक्ट होने के लिए सालों या महीने लगते हैं वह कार्य बच्चा गर्भ में घंटों में सीख सकता है यही वह विधि थी जिस का प्रयोगिक रूप भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सिखाया और अर्जुन ने उसका प्रयोग अपनी पत्नी पर किया जब वह गर्भवती थी अभिमन्यु उसके गर्भ में था अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान गर्भ में ही प्राप्त किया था
यह विधि मुझे गुरु शिष्य परंपरा में अपने गुरु श्री सुरेंद्र गिरी जी से प्राप्त हुई यदि कोई गर्भवती स्त्री चाहती है कि वह किसी विशेष बच्चे को जन्म दे जैसे वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, अभिनेता या ऋषि-मुनि
माना वह एक श्रेष्ठ क्रिकेट खिलाड़ी को जन्म देना चाहती है तो गर्भ के दौरान माता को चाहिए कि उसकी सभी क्रियाएं पढ़ना-लिखना tv देखना सभी क्रिकेट से संबंधित हो, सोचना विचारना बातें करना सब कुछ क्रिकेट खेल की ही हो और यह सब वह पूरी रुचि के साथ करें जैसे एक इंजीनियर परफेक्ट पार्ट बनाने के लिए अपनी संपूर्ण योग्यता का प्रयोग करता है ऐसे ही अपनी इच्छा अनुसार योग्यताओं से परिपूर्ण बच्चा प्राप्त करना भी प्रयोगिक किया है पांचों इंद्रियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर मस्तिष्क में विचार चलते हैं और विचारों के आधार पर मस्तिष्क बायोकेमिकल बनाता है इन बायो केमिकल का रस बच्चे का भोजन होता है और मस्तिष्क में चलने वाले विचार उसका ज्ञान
एक बार एक ऐसे लड़के को मुझे हीलिंग देने बाहर
जाना हुआ जो शारीरिक रूप से विकलांग था उसकी मानसिक समस्या यह थी कि यदि कोई उसके बिस्तर पर आकर बैठ जाए तो वह बहुत अधिक डर और सहम जाता था बे कारण ही अक्सर वह रोने लगता था एक दिन काउंसलिंग के समय मैं उसकी मां को बता रहा था कि यदि गर्भ के समय माता हर समय कुंठित डरी-सहमी या क्रोधित रहती है तो बच्चा भी जन्म के बाद ऐसी भावनाओं से प्रभावित रहेगा मेरी बात जैसे ही पूरी हुई उसकी मां ने बड़ी दुख भरी आवाज में रोते हुए कहा की इसका मतलब मैं ही दोषी हूं अपने बेटे की ऐसी अवस्था के लिए
आप ठीक कहते हैं जब तक यह मेरे पेट में रहा पूरे 9 महीने मेरे डर से भरे व रो रो कर निकले मेरी सास मुझ पर बहुत अत्याचार करती थी मुझे मारती पीटती रहती थी
जैसे भारी डर की अवस्था में कोई कलाकार जब मूर्ति बनाता है तो वह अपनी योग्यता का पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाएगा वैसे ही गर्भ में पल रहे बच्चे का निर्माता अंतर्मन करता है डर की अवस्था में निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न होने से बच्चों में विकृति आ जाती है इसी कारण से डॉक्टर गर्भावस्था में खुश रहने की सलाह देते हैं
नोट:- जब गर्भ में बच्चा 3 महीने का हो जाए तो मां बच्चे को संदेश दे सकती है शांतचित्त से मां 15 से 20 मिनट लेट जाए या सुखासन में बैठ जाएं जब मन के विचार शांत हो जाए तो धीरे-धीरे अपना ध्यान गर्भस्थ शिशु पर ले जाए आंखें बंद कर ले और कल्पना करें कि तुम उसे देख रहे हो और वह भी तुम्हें देख वह सुन रहा है मातृत्व के प्रेम में खो जाए जैसे ही मां इतनी गहरी भावनाओं में खो जाएंगीे उसका लिंक गर्भस्थ शिशु से हो जाएगा अब जो भी निर्देश या संदेश मां उसे देगी वह स्वीकार करेगा मां उसे उच्च कोटि के विचार दें जैसे तुम सभी श्रेष्ठ गुण और योग्यताओं से संपन्न हो अवश्य तुम श्रेष्ठ और महान बनोगे तुम अपने माता पिता और अपने देश का नाम रोशन करोगे आदि उच्च विचार दे
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ReplyDeletedisadvantages of almond oil on face