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Showing posts from April, 2019

GEETA PART SIX

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"GEETA PART SIX" इस आर्टिकल में हम गीता के 6 अध्याय का अध्ययन करेंगे जिसमें श्री भगवान, अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि:- श्री भगवान कृष्ण बोले :- जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला सन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योग्य नहीं है हे अर्जुन! जिसको संन्यास ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग जान, क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता। योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष के लिए योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही हेतु कहा जाता है। और योगारूढ़ को जाने पर उस योगारूढ़  पुरुष का जो सर्वसंकल्पों का अभाव है, वहीं कल्याण में हेतु कहा जाता है। जिस काल में न तो इंद्रियों के भागों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है, उस काल में सर्वसंकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है। अपने द्वारा, अपना संसार खुद ही उद्धार करे और अपने को अधोगति में ना डाले; क्योंकि मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना

Bhakti

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"Bhakti" आजकल के इस दौर में नास्तिक और आस्तिक सभी प्रकार के लोग हैं और पहले भी थे। लेकिन सोचना हमारा इस बात का होता है की जब हमारे सामने कोई भी चुनौती होती है, तो हम उसको कितना समझ पाते हैं लेकिन यहां बात भक्ति की हो रही है तो हमें देखना यह होता है कि भक्ति की परिभाषा क्या है, भक्ति को हम किस दृष्टिकोण से देखते हैं। यह बहुत मायने रखता है ईश्वर ने हर सांसारिक वस्तु को बनाया है।और संपूर्ण संसार इस परमात्मा में ही समाया हुआ है, हर प्राणी के सामने दो ही रास्ते होते हैं सत्य और असत्य कुछ लोग इस श्रेणी में भी आते हैं कि वह यह समझने की कोशिश नहीं करते हैं कि सत्य क्या है,  कुछ सत्य के सिवा जानते ही नहीं उनको असत्य पर चलना पसंद नहीं आता ,कुछ लोग असत्य में रहते हुए भी एक सच्चाई का ढोंग रचते हुए दिखावा करते हैं कुछ लोग दोनों रास्तों को अपनाकर अपने लिए एक  मुसीबत ही खड़ी कर लेते हैं क्योंकि दोनों रास्तों को अपनाकर उसे सत्य का पुण्य ना मिलते हुए उसे उस पाप का भागी ही बनना पड़ता है। क्योंकि जिस प्रकार एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है उसी प्रकार तुम