Bhakti


"Bhakti"

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आजकल के इस दौर में नास्तिक और आस्तिक सभी प्रकार के लोग हैं और पहले भी थे। लेकिन सोचना हमारा इस बात का होता है की जब हमारे सामने कोई भी चुनौती होती है, तो हम उसको कितना समझ पाते हैं लेकिन यहां बात भक्ति की हो रही है तो हमें देखना यह होता है कि भक्ति की परिभाषा क्या है, भक्ति को हम किस दृष्टिकोण से देखते हैं। यह बहुत मायने रखता है ईश्वर ने हर सांसारिक वस्तु को बनाया है।और संपूर्ण संसार इस परमात्मा में ही समाया हुआ है, हर प्राणी के सामने दो ही रास्ते होते हैं सत्य और असत्य कुछ लोग इस श्रेणी में भी आते हैं कि वह यह समझने की कोशिश नहीं करते हैं कि सत्य क्या है,  कुछ सत्य के सिवा जानते ही नहीं उनको असत्य पर चलना पसंद नहीं आता ,कुछ लोग असत्य में रहते हुए भी एक सच्चाई का ढोंग रचते हुए दिखावा करते हैं कुछ लोग दोनों रास्तों को अपनाकर अपने लिए एक  मुसीबत ही खड़ी कर लेते हैं क्योंकि दोनों रास्तों को अपनाकर उसे सत्य का पुण्य ना मिलते हुए उसे उस पाप का भागी ही बनना पड़ता है। क्योंकि जिस प्रकार एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है उसी प्रकार तुम दोनों मार्गों को नहीं अपना सकते और ना ही चल सकते हैं क्योंकि जरा सी भी गलती हमारी सत्य मार्ग को गंदा कर देती है, और जो सत्य है वह सत्य ही है उसका तो क्या गंदा होना और क्या खराब होना, हर प्राणी के सामने सत्य मार्ग और असत्य मार्ग की अपनाने का एक संकल्प लेना होता है। अब चाहे असत्य मार्ग को अपना ले, चाहे सत्य मार्ग को अपना ले लेकिन दोनों मार्गों को अपना ना तो मूर्खता ही है क्योंकि उसको इस स्थिति में सत्य का कभी पुण्य नहीं मिलने वाला क्योंकि वह सत्य के ऊपर और एक कलंक जैसा साबित होता है लेकिन सत्य को अपनाने वाला कभी असत्य को अपनाने की कोशिश नहीं करेगा। जरूरत है, जो असत्य मार्ग पर चलते हैं उनको ही सत्य अपनाने की जरूरत पड़ती है और उनको ही सत्य अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि जो सत्य पर है उसे तो जरूरत ही क्या है सत्य मार्ग अपनाने की क्योंकि वह तो खुद ही स्वयं सत्य मार्ग पर चल रहा है।
" ऐसा वह मार्ग जिसके द्वारा हमारे पाप कर्म कटते हुए और ईश्वर से जुड़ जाते हैं अर्थात जुड़ जाने को ही भक्ति कहते हैं"
भक्ति से हमारा क्या तात्पर्य है यह हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिरकार भक्ति को समझने के लिए हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए।
भक्ति हमको सीधा ईश्वर से जोड़ती है लेकिन समझना हमें इस बात को है कि क्या ईश्वर के नाम की माला जपना ही भक्ति है, हां ईश्वर की नाम की माला भी जपना भक्ति का एक भाग है लेकिन हमें इस नाम के जपने के साथ साथ उस ईश्वर के प्रकृति के बनाए हुए नियमों का भी पालन करना होता है अर्थात कह सकते हैं। कि ईश्वर की भक्ति के अनेक भाग होते हैं उन सभी भागों को मिलाकर तब हमारी संपूर्ण भक्ती बनती है। जैसे कि हम प्रभु के नाम की माला जपते हैं अर्थात भजन करते हैं लेकिन इसके साथ साथ हमें ईश्वर के बनाए पूर्ण सत्य नियमों का पालन अवश्य करना होता है। वरना प्रभु के भजन का कोई अर्थ नहीं रहता वह अर्थहीन हो जाता है और उल्टा पाप के दोषी ही बन जाते हैं ।और जब आप उन नियमों का पालन नहीं करते तो समाज भी आपको ढोंगी बोलने से नहीं चूकता क्योंकि प्रभु के राम नाम के भजन के लिए ईश्वर के बनाए हुए नियम एक आधार है और वह आधार सत्य नियमों का पालन करने से बनता है जैसे कि 
सत्य बोलना,
 चोरी ना करना,
  लड़ाई झगड़ा न करना,
   शुद्ध विचार रखना,
    पवित्र कर्म करना ,
    पवित्र बानी बोलना ,
    इंद्रियों को वश में रखना,
     धर्म का प्रचार करना ,
     धर्म की रक्षा करना,
     छल कपट न करना, आदि आदि
      समाज में सभी को ईश्वर का जीव समझना जीवो पर दया करना ,
      और किसी भी प्रकार से कुछ गलत ना करना
       संयम में रहना,
        कर्तव्यनिष्ठ रहना,
         ईमानदार रहना,
         
          और यहां तक की ईश्वर के भक्तों को सम्मान की लालसा नहीं होती एक सीमा तक उसको बर्दाश्त करता है। क्योंकि ईश्वर कहता है की कुछ व्यक्तियों का स्वभाव नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में अधिक रहता है तो उसको समझने में थोड़ी देर लगती है लेकिन वह समझ जाता है। जब कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से समझने की कोशिश नहीं करता ईश्वर ने उसी के लिए विरोध करना बताया है। यहां तक की उसके किए का दंड भी दिया जा सकता है । भक्ति का यह भी एक नियम है।
          आजकल के दौर में भक्ति को एक अबला नारी की तरह समझ लिया गया है की भक्ति सिर्फ राम का नाम लेना ही भक्ति है ।
          अज्ञानियों की विचारधारा के अनुसार एक भक्त को नाजुक समझ लिया जाता है, उनकी सोच होती है कि यह भक्त आदमी है इससे आप कुछ भी कहें यह आपको कुछ भी नहीं बोलेगा यह किसी बात का विरोध नहीं करेगा लेकिन भाई मैं आपको बता दूं यह लोगों की विचारधारा एकदम गलत है ,जो भक्त है जो ईश्वर के रास्ते पर चलने वाला है ईश्वर को मानने वाला है आपकी हर गलत बात का विरोध करेगा और वह आपसे ज्यादा मजबूत होगा आपसे ज्यादा श्रेष्ठ होगा और आप से ज्यादा शक्तिशाली यह मेरी बात एकदम सत्य है, क्योंकि आप इतिहास उठा कर देख सकते हैं जो भी धार्मिक व्यक्ति है हमेशा उसका प्रभाव अधिक ही देखने को मिला है।
          
और बाकी अपना काम देखो इससे कोई और बस कोई चाहे कुछ भी कहे, किसी पर कोई क्रोध मत करो पर मैं आपको बताता हूं ईश्वर का यह संदेश बिल्कुल भी नहीं है। भक्त हमेशा अपने कर्तव्य के प्रति तत्पर रहता है और भक्ति भी हमको सत्य मार्ग पर अटल रहने के लिए बोलती है हर गलत चीज का विरोध करने के लिए बोलती है,
 हर गलत व्यक्ति को क्रोध करने के लिए बोलती है,
  और अपने धर्म की रक्षा करने के लिए भी बोलती है,
   जिस प्रकार एक असत्य व्यक्ति अपनी असभ्यता में रहता है उसी प्रकार भक्त भी अपनी भक्ति में कट्टर होता है और वह किसी भी गलत बात को समाज में बर्दाश्त नहीं करता और ना करनी चाहिए क्योंकि भक्ति हमको सिखाती है की जब हम सत्य मार्ग का पालन कर रहे हैं तो तुम असत्य का विरोध अवश्य करोगे ईश्वर सत्य के साथ हैं, क्योंकि जिस प्रकार राक्षस प्रवृत्ति लोगों को सत्य मंजूर नहीं होता उसी प्रकार देवता प्रवृत्ति लोगों को असत्य मंजूर नहीं होता लेकिन सत्यवादी लोगों की संख्या अधिकतर कम ही होती है लेकिन सत्य में वह प्रभाव होता है कि वह कितना भी अंधकार उसको घेर ले लेकिन उस को चीरता हुआ एक प्रकाश की तरह हमेशा सत्य दिखाई देता है, यही ईश्वर की माया है,और यही सत्य है, सत्य ही ईश्वर है, ईश्वर ही सत्य है, और सनातन धर्म ही पुराना सबसे धर्म है इसकी रक्षा करें इसका प्रचार करें अधर्म का विरोध करें ,
धर्म कोई ऐसी वस्तु नहीं है कि उसको किसी विषय के साथ जोड़ दिया जाए।

 "धर्म एक वह मार्ग है जिसके द्वारा हम ईश्वर के साथ बंध जाते हैं और ऐसा वह ज्ञान जिसके द्वारा हम यह समझ लेते हैं की वास्तविकता में सत्य क्या है, और असत्य क्या  है, और हम उस सत्य को चुन लेते हैं इसी को हम धर्म कहते हैं"

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