Science of Upvash
"Science of Upvash"
भारतीय संस्कृति में व्रत का बड़ा ही महत्व है लेकिन जिन विचारों के साथ व्रत किया जाता था आज वह अपने आधार से हट गया है व्रत एक साधना है जो हठयोग से जुड़ी हुई है हठयोग में प्रकृति से हटकर या विपरीत कार्य करके ध्यान किया जाता है या अपने इष्ट देवता को मनाया जाता है यह ध्यान की एक अद्भुत क्रिया है क्योंकि सहज योग में किसी भी लक्ष्य के लिए ध्यान लगाना कठिन होता है बार बार ध्यान अन्य विचारों पर चला जाता है किंतु जब इंसान व्रत करता है तो वह भूखा रहता है इस भूख के कारण उसका पूरा ध्यान स्वयं पर बना रहता है और व्रतधारी व्रत के प्रारंभ में जो संकल्प लेता है वह संकल्प को बार बार दोहराता रहता है जिससे उसकी एकाग्रता संकल्प पर बनी रहती है और उसका संकल्प सिद्ध हो जाता है यही व्रत का सही नियम है
जैसे हठयोगी दो पैरों के स्थान पर एक पैर पर खड़ा हो जाता है वह जानबूझकर अप्राकृतिक क्रिया करता है दर्द के कारण दर्द के कारण उसका पूरा ध्यान उस एक अंग पर आ जाता है वह अपने ज्ञान और साधना के बल पर उस दर्द का संबंध अपने इष्ट देवता से जोड़ देता है एक समय बाद दर्द का एहसास समाप्त हो जाता है और वह आनंद में बदल जाता है जैसे ही दर्द आनंद में बदलता है तो उसकी साधना सिद्ध हो जाती है साधना में लिए संकल्प के अनुसार उसे फल प्राप्त हो जाता है
आज व्रत केवल कर्मकांड बन गया है जिसमें बिना खाए रहना ही व्रत का अर्थ मान लिया है
व्रत संकल्प विधि:- व्रत के इष्ट देवता की पूजा शुरू करने के समय सीधे हाथ में जल ले और संकल्प करें हे इष्ट देवता (व्रत के देवी या देवता का नाम लेते हुए) मैं आपका व्रत संकल्प करती हूं/करता हूं कि मैं आज संध्या तक अन्न का त्याग करती हूं/ करता हूं और अपने घर में सुख समृद्धि और शांति की कामना से आप का व्रत पूजन करती हूं/ करता हूं( अपनी इच्छा अनुसार कामना की जा सकती है )और फिर जल को नीचे छोड़ दे
यह संकल्प की ही शक्ति थी जिसने राजकुमार सिद्धार्थ को महात्मा बुद्ध बनाया
भारतीय संस्कृति में व्रत का बड़ा ही महत्व है लेकिन जिन विचारों के साथ व्रत किया जाता था आज वह अपने आधार से हट गया है व्रत एक साधना है जो हठयोग से जुड़ी हुई है हठयोग में प्रकृति से हटकर या विपरीत कार्य करके ध्यान किया जाता है या अपने इष्ट देवता को मनाया जाता है यह ध्यान की एक अद्भुत क्रिया है क्योंकि सहज योग में किसी भी लक्ष्य के लिए ध्यान लगाना कठिन होता है बार बार ध्यान अन्य विचारों पर चला जाता है किंतु जब इंसान व्रत करता है तो वह भूखा रहता है इस भूख के कारण उसका पूरा ध्यान स्वयं पर बना रहता है और व्रतधारी व्रत के प्रारंभ में जो संकल्प लेता है वह संकल्प को बार बार दोहराता रहता है जिससे उसकी एकाग्रता संकल्प पर बनी रहती है और उसका संकल्प सिद्ध हो जाता है यही व्रत का सही नियम है
जैसे हठयोगी दो पैरों के स्थान पर एक पैर पर खड़ा हो जाता है वह जानबूझकर अप्राकृतिक क्रिया करता है दर्द के कारण दर्द के कारण उसका पूरा ध्यान उस एक अंग पर आ जाता है वह अपने ज्ञान और साधना के बल पर उस दर्द का संबंध अपने इष्ट देवता से जोड़ देता है एक समय बाद दर्द का एहसास समाप्त हो जाता है और वह आनंद में बदल जाता है जैसे ही दर्द आनंद में बदलता है तो उसकी साधना सिद्ध हो जाती है साधना में लिए संकल्प के अनुसार उसे फल प्राप्त हो जाता है
आज व्रत केवल कर्मकांड बन गया है जिसमें बिना खाए रहना ही व्रत का अर्थ मान लिया है
यह संकल्प की ही शक्ति थी जिसने राजकुमार सिद्धार्थ को महात्मा बुद्ध बनाया
Radha Krishna
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